जाने 1947 में कितनी थी महंगाई ?

समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। वह हर पल हर घड़ी बदलता रहता है और वक्त के साथ ही उससे जुड़ी हर चीज बदल जाती है। लेकिन वह पुरानी यादें ही है जो हमें अपने बीते हुए कल का एहसास कराती है।

history of 1947

 

हमारे देश को आजाद होने के 70 साल होने को है और इन 70 सालों में पूरा देश बदल चुका है। लेकिन दोस्तो आज हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि आज से 70 साल पहले 1947 के अगस्त महीने में कैसा रहा होगा हमारा देश और उस वक्त विविध चीजों का मूल्य क्या था।

history of 1947

आज महंगाई ने हर चीज में अपनी हद पार कर दी है बेशक सैलरी और लाइफस्टाइल में परिवर्तन आया है लेकिन आजादी के बाद इतनी महगाई नहीं थी कि सामान्य इंसान आसानी से अपना जीवन निर्वाह ना कर सके। उस वक्त किसी वस्तु की कीमत रूपये, आने, पैसे और पाई में होती थी। ₹1 का सिक्का तो नगद चांदी का हुआ करता था। और रुपए की कीमत 16 आने यानी 64 पैसे थे और उस वक्त एक डॉलर की कीमत भी एक रुपए जितनी ही थी।


रुपया इतना स्ट्रॉन्ग, कि रोजाना की चीजों की खरीदारी चिल्लर में ही हो जाती थी नोट की जरूरत ना थी। चावल 65 पैसे प्रति किलो के दाम पर और गेहू 26 पैसे पर मिल जाते थे और चीनी तब 57 पैसे प्रति किलो थी।आलू चाट का एक प्लेट का एक आना लिया जाता था। अहमदाबाद से मुंबई तक की हवाई यात्रा 18 रुपए में होती थी। रेडियो सो रुपए में मिल जाते थे और अच्छी क्वालिटी का वाटर प्रूफ रेनकोट महज  दो से ढाई रूपए तक मिल जाता था।

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फिल्म की टिकट 40 पैसे से लेकर 8 आने तक मिल जाती थी।आज के दौर में 1947 की यह दाम हमें भले ही चिल्लर जैसे लगते हो लेकिन यह भी सच है कि उस समय भारत के लोगों की एवरेज इनकम 150 रुपए से ज्यादा नहीं थी। उस वक्त इतनी कम इन कम में भी कम खर्च में आसानी से जीवन निर्वाह हो जाता था। और लग्जरी जैसी चीजों के बारे में जीवन का स्तर इतना नीचे था कि प्रति 2000 व्यक्ति पर एक रेडियो था और हजारों व्यक्तियों के बीच एक टेलीफोन था।

दोस्तों यह हालात 1947 के थे और ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में चीजों के दाम बहुत कम ही थे। हमारे पुरखों ने गुजरा यह दौर अब कभी वापस नहीं आने वाला लेकिन उस दौर को हम किताबों में और यादों में संजोये रखेंगे।

दोस्तों यह हालात 1947 के थे और ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में चीजों के दाम बहुत कम ही थे। हमारे पुरखों ने गुजरा यह दौर अब कभी वापस नहीं आने वाला लेकिन उस दौर को हम किताबों में और यादों में संजोये रखेंगे।

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Viren Raikwal
Viren Raikwal

असली बहादुरी तो तब है, जब आप वह करे जो सही है, भले ही वह ज्यादा लोकप्रिय ना हो....

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